उज्जैन। कोरोना वायरस के चलते शिक्षण संस्थान बंद हैं और प्रदेश के अशासकीय शिक्षण संस्थान नियमों का पालन नहीं कर रहे। गौरतलब है कि कई संस्थान प्रबंधन पिछले 3 महीनों से शिक्षकों को वेतन तक नहीं दे रहे। इसके चलते शिक्षकों के सामने जीवन यापन का प्रश्न खड़ा हो गया है।
शिक्षकों की विभिन्न समस्याओं को लेकर नेशनल नॉन गवर्नमेंट टीचर्स आर्गनाइजेशन (एनजीटीओ) की जिलाध्यक्ष ऋतु श्रीवास्तव व सचिव सपना चौहान ने जिला शिक्षा अधिकारी को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में कहा गया कि शिक्षण संस्थान प्रबंधनों की शिक्षकों के प्रति मनमानी बढ़ती जा रही है जबकि संस्थानोंं को शासन के सेवा नियमों के दायरे में ही रहकर काम करना होता है परंतु आज हालात यह बन गए हैं कि प्रदेश के हर जिले के अनेक स्कूलों व महाविद्यालयों ने पिछले 3 महीनों से शिक्षकों को वेतन नहीं दिया है। एनजीटीओ की जिलाध्यक्ष श्रीमती ऋतु श्रीवास्तव ने बताया कि कई विद्यालय से शिक्षकों को बिना पूर्व सूचना के विद्यालय से निकाल रहे हैं, निकाल देने की धमकी दी जा रही है। शिक्षकों को पुरानी तारीखें डालकर निष्कासन पत्र थमाए जा रहे हैं। प्रधान अध्यापक-अध्यापिका को भी नौकरी से निकाला जा रहा है। इस तरह की शिकायतें प्रत्येक जिले की तहसीलों से भी मिल रही हैं। इसकी शिकायत एनजीटीओ ने इंदौर के श्रम आयुक्त कमिश्नर और नोडल ऑफिसर से भी की है। साथ ही प्राइवेट संस्थान संचालक यूजीसी व शिक्षा बोर्डों के सेवा नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, वेतनमान व अन्य लाभ नहीं दे रहे। वे शिक्षकों को पेंशन, सीपीएफ, जीपीएफ, रिटायरमेंट बेनिफिट मेडिकल सहित अन्य सुविधाओं से वंचित रखते हैं।
शिक्षण संस्थाओं में दो-दो रजिस्टर मेंटेन किये जा रहे हैं, प्रशासन को दिखाने वाला अलग और वास्तविक कर्मचारियों का अलग, इसकी जांच की जानी चाहिए। इस तरह का अन्याय शिक्षकों पर वर्षों से होता चला आ रहा है। एनजीटीओ शासन से मांग करता है कि मुख्यमंत्री राहत कोष से शिक्षकों को उचित सहायता राशि प्रदान की जाए तथा मामले को संज्ञान में लेकर त्वरित कार्रवाई करके शिक्षकों का तीन महीनों का रुका वेतन दिलाने का कष्ट करें। आशा है मुख्यमंत्री जी शिक्षकों की संवेदना को समझते हुए उनके हितों का संरक्षण करने का कष्ट करेंगे।
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