माधवराव सिंधिया जी की प्रतिमा और छतरी चौक का विकास नए सिरे से हो
उज्जैन। उज्जैन इतिहास के प्रत्येक कालखंड में जाना जाता है। उज्जैन की विरासत प्राचीन रही है, प्राचीन विरासत ने उज्जैन को रोजगार दिया है। वर्तमान में धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पर्यटन का केंद्र इसीलिए उज्जैन बना हुआ है। आवश्यकता इस बात की है की प्राचीन धरोहरों की देखभाल और विकास पर जिस प्रकार काम किया गया वह कुछ महीनों में सही अर्थात ज्यादा गलत हुआ है।
एक लेख में भाजपा नेता सुरेन्द्र सांखला ने कहा महाकाल मंदिर सहित उज्जैन की प्राचीन धरोहर, मंदिरों को जिस रूप में उन्हें बनाया गया था उसी रूप में संरक्षित करने की कर आवश्यकता है। अतिक्रमण के दौर में प्रत्येक मंदिरों की वैभवशाली धरोहरों को अस्तित्वहिन करने का काम भी हुआ है। जैसे उज्जैन का तिलकेश्वर महादेव मंदिर। यह प्राचीनतम मंदिर है। मंदिर की बनावट, परकोटा जिसे संरक्षित करना तो दूर परकोटे से सटा हुआ अतिक्रमण इस बात को चिन्हित करता है की अब ऐसी धरोहर की जरूरत नहीं है।
वहीं उज्जैन शहर की धरोहर 16 सागर को भी धार्मिक मान्यताओं के साथ मराठा और गुप्त काल में विकसित किया गया था, जो अब नए विकास, निर्माण के साथ पूरी पूरी तरीके से अतिक्रमण की भेंट चढ़कर विकसित हो गए हैं। कुछ आज भी विकास की बांट जोह रहे हैं। एक वक्त था जब उज्जैन के मराठा शासक सिंधिया स्टेट के राजा स्व.माधवराव जी सिंधिया, जिनका उज्जैन से गहरा नाता रहा है। उन्होंने उज्जैन का कोठी महल जो उनका आशियाना हुआ करता था, इतनी प्राचीन और सुव्यवस्थित महल भी अतिक्रमण और अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गया। स्वर्गीय माधवराव सिंधिया यानि श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी के परदादा जिन्होंने फ्रीगंज की नींव रखी। उन्होंने ने फ्रीगंज क्षेत्र को विकसित कर शहर का विस्तार किया था। उस समय की इतनी अच्छी प्लानिंग पर अब देखा जाए तो चारों तरफ कहीं न कहीं अव्यवस्था अतिक्रमण का साया है। हम विरासत में प्राप्त कोठी महल को सुरक्षित नहीं रख पाए। हजारों करोड़ रुपए के विकास निर्माण कार्य उज्जैन में किए गए, किंतु हम सूर्य मंदिर, बावन कुंड और कालियादा महल को सुरक्षित रखने में नाकाम रहे। हम उज्जैन के एकमात्र सिंधिया विरासत के थिएटर नाट्यगृह को भी सुरक्षित नहीं रख पाए। महाराज वाडा की भव्य और सुंदर इमारत पुराने विलास की अद्भुत कोठी को हम आज तक उसके स्वभाविक होने का एहसास नहीं करवा पाए। सेंट्रल कोतवाली उज्जैन की एक प्राचीनतम भवन जिसे सिर्फ चुनो से हमने पोता है हम उस पर संरक्षण के लिए कोई काम नहीं कर पाए। सती गेट पर भी सही काम नहीं कर पाए। अनेक प्राचीन मंदिर अब बेतुके रंगों से होते हुए हैं। उनका असली स्वरूप अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमे प्रमुख रूप से 84 महादेव मंदिर जिन्हें हर 12 वर्ष में सिर्फ शासकीय मदद करने की मंडी बना दिया गया। लेकिन तराशे हुए पत्थरों को उनका अस्तित्व बताने का कोई काम नहीं हुआ। पुरातात्विक विश्लेषण करता हूं, अनेक अध्ययन किए, किंतु हम एक ऐसा स्थान नहीं बना पाए जहां सब मूर्तियां एकत्रित हो सके।गढ़कालिका मंदिर, भरतरी गुफा, राम जनार्दन मंदिर, सांदीपनि आश्रम, गोपाल मंदिर, हरसिद्धि मंदिर सहित अनेक स्थानों पर धर्मशालाएं इत्यादि तो बनाई। लेकिन वास्तविक विकास जिसमें हमारी प्राचीनता का एहसास हो उसे शने:शने: समाप्त कर दिया गया है। पुरातत्व विभाग के आदेशों का उल्लंघन करते हुए यहां यही कहा जाएगा क्षीर सागर गेट जो कि एक रात में श्रीमंत माधवराव जी सिंधिया के जन्मदिन के उपलक्ष में बनवाया गया था वह भी कहीं न कहीं अतिक्रमण की चपेट में है। चौबीस खंबा द्वार, महाकाल मंदिर पर जाने का मुख्य द्वार था पूरी तरीके से अपनी विरासत को खोते हुए अब बंद कर दिया गया है। 24 खंभों की ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटकों के लिए खोला जाना चाहिए, लालबाई फूलबाई मंदिर, चौसठ योगिनी माता मंदिर सहित अनेक माता मंदिर का वास्तविक स्वरूप निखारा जाना चाहिए। इतिहास के साक्षी इन मंदिरों की विकास की नई इबारत के साथ उज्जैन शहर को पुनः विकसित करने के लिए बनी स्मार्ट सिटी परियोजना में किसी भी पुराने स्पॉट पर तोड़फोड़ नहीं करके पूर्ण संरक्षित करते हुए संपूर्ण मंदिरों, प्राचीन घाटो, भवन आदि को अतिक्रमण मुक्त कर पुरातत्व संरक्षण के अधीन किया जाना चाहिए। सुरेन्द्र सांखला ने यह भी कहा कि आज तो मैं इस बात की भी घोर निंदा करता हूं कि स्वर्गीय माधवराव सिंधिया प्रथम जो कि एक शासक थे उनका स्टेच्यू छत्री चौक पर अतिक्रमण की भेंट चढ़ा हुआ है। पिछले कई वर्षों से लोडिंग और अवैध पुलिस चौकी स्टेच्यू के सामने खड़ी देखी जा सकती है। यह स्टेच्यू उस व्यक्तित्व का है जिसने उज्जैन को नाट्यग्रह दिए, मंदिरों के जीर्णोद्धार दिए, व्यापारिक और सांस्कृतिक नगरी का एहसास कराया, संरक्षण दिया, जिनके नाम से आज भी छतरी चौक पर विक्रम लाइब्रेरी सिंधिया राजवंश में उज्जैन को दी, माधव कॉलेज का भवन इत्यादि दिए ऐसे व्यक्ति की स्टेच्यू के सामने अतिक्रमण हो जाए बार-बार कहने के बाद भी नहीं हटे इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता।
इसलिए उज्जैन में पुरानी जितनी भी इमारते और मंदिर अतिक्रमण मुक्त हो सरकार स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में सबसे पहले इनका संरक्षण करें। कालियादेह महल से लेकर रामघाट तक नौका बिहार भी बनाए जाए, तथा इसके लिए एक अलग से अध्ययन दल बनाकर रिपोर्ट तैयार की जाए।क्योंकि उज्जैन नगर निगम की कार्यप्रणाली ने यह सिद्ध कर दिया कि वह मौजूदा अतिक्रमण के आगे ही विकास करेगी।इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इसके लिए अलग से व्यवस्था हो।
लेखक
सुरेन्द्र सांखला प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भाजपा मध्य प्रदेश उज्जैन (म.प्र.)
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