उज्जैन। नगर सरकार को लेकर चल रही उठा पटक के बाद जो परिणाम आये है उससे यह साबित होता है की उज्जैन शहर की जनता ने एक बार फिर भाजपा को ही जिम्मेदारी सोंपी है। यहां भाजपा के मुकेश टटवाल को जनता ने चुना है। बेहद सहज स्वाभाव के टटवाल को नगर निगम को संभालना एक चुनौती ही रहेगा। अब देखना यह है की चुनावी समर में जनता से किये गए वादे पर सत्ताधारी दल कितना खरा उतरता है।
उल्लेखनीय है की उज्जैन में 6 जुलाई को मतदान के बाद रविवार 17जुलाई को आये परिणाम में 54 वार्डो में से भाजपा ने 37 तो कांग्रेस ने 17 सीट पर कब्जा जमा कर जीत हांसिल की है। यहां यह बात भी गौर करने वाली है की उज्जैन की जनता ने न तो किसी निर्दलीय को चुना है ओर न ही किसी अन्य दल के प्रत्याशी को जिताया है। आये परिणाम से यह तो साफ हो गया है की नगर निगम में बोर्ड तो भाजपा का ही बन रहा है।
कांग्रेस को नया प्रयोग भारी पड़ा
कांग्रेस ने शहर में पहली बार महापौर पद के प्रत्याशी के रूप में बलाई समाज से टिकट दिया था। वर्ष 1999 में उज्जैन की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई थी। वर्ष 2000 में हुए चुनाव में भाजपा से बैरवा समाज से मदनलाल ललावत व कांग्रेस से कौरी समाज से पूर्व सांसद सत्यनारायण पंवार का टिकट दिया था। इसमें भाजपा के ललावत जीते थे। वर्ष 2005 के चुनाव में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया की बहन सुमित्रा चौधरी को प्रत्याशी बनाया था। वह रविदास समाज से थीं। उस चुनाव में बैरवा समाज से कांग्रेस प्रत्याशी सोनी मेहर ने जीत हासिल की थी। इसके बाद के सभी चुनावों में दोनों पार्टियों ने बैरवा समाज से ही उम्मीदवार खड़े किए हैं। इस बार कांग्रेस ने बदलाव करते हुए बलाई समाज से महापौर प्रत्याशी उतारा और यह प्रयोग भारी पड़ा।
अच्छी टक्कर दी महेश ने
कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी महेश परमार का राजनीतिक सफर उज्जैन के माधव कॉलेज से ही शुरू हुआ था। इसके बाद उन्होंने अपने दम पर पार्टी में जगह बनाई और जिलापंचायत अध्यक्ष के साथ ही विधायक तक का सफर तय किया। लेकिन उन पर लगा बाहरी प्रत्याशी होने का तमगा और चुनाव मैनेजमेंट कर रही टीम के कारण ही यह हार हुई है। बताया जा रहा है की जिन लोगों ने उनका चुनाव मैनेजमेंट किया उन्होने कुछ तो कमी छोड़ दी जिसके कारण उन्हें हार का मुहं देखना पड़ा।
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