स्थापना दिवस पर विशेष
स्वाधीनता के बाद 1951 में देश की दलीय राजनीति में राष्ट्रवादियों द्वारा एक 'दीया' जलाया गया था ताकि लोकतंत्र का उजाला राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे। विदेशी दासता से मुक्ति के बाद डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ की स्थापना का मूल उद्देश्य यही था। उसका चुनाव चिन्ह 'दीपक' था। यह अलग बात है कि उस दौर में स्वतंत्र भारत में कॉंग्रेस की स्वीकार्यता व्यापक थी और किसी भी नयी राजनीतिक विचारधारा के लिए राह कठिन थी। यही वजह है कि एक नई पार्टी के तौर पर अखिल भारतीय जनसंघ को 1952 के आम संसदीय चुनाव में 2 सीटें ही मिलीं। अनेक राजनीतिक कारणों से जनता पार्टी में विलय, फिर जनसंघ की पहचान के साथ अंततः 6 अप्रैल 1980 को 'भारतीय जनता पार्टी' ने साकार रूप लिया। प्रारंभिक चार साल के संघर्ष के बाद 1984 के आम चुनाव में उसे भी मात्र 2 सीटें मिलीं। जनसंघ और भाजपा दोनों में यह एक अद्भुत समानता देखी जा सकती है कि पर्याप्त पहचान बना लेने के बावजूद दोनों का खाता 2 से ही खुला।
स्मरण रहे कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को गाँधी जी और सरदार पटेल के आग्रह पर स्वतंत्रता के बाद बनी पहली सरकार में मंत्री बनाया गया था। परन्तु वे सरकार में रहते हुए लोककल्याण और राष्ट्रहित के लिए प्रतिबद्ध रहे। उनके बाद पण्डित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि के नेतृत्व में भी भाजपा लंबे समय तक विपक्ष में ही रही, परन्तु उसने कभी अपने संकल्पों के साथ समझौता नहीं किया। भाजपा ने तीन दशक से अधिक समय तक भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी भूमिका का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया। विपक्षी दल होते हुए भी भाजपा और उसके नेतृत्व ने भारत ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया में अपनी अनुकरणीय छाप छोड़ी।
निःसंदेह जनसंघ के बाद भाजपा तक की यात्रा में दल का नाम भले ही बदला, लेकिन न तो उसके मुद्दे बदले और न ही उसकी नीयत और निष्ठा बदली। 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी भी हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता के साथ साथ जम्मू व कश्मीर में धारा 370 हटाने, अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता संहिता के प्रति पहले दिन से ही संकल्पित रही। इसलिए 2 सीटों पर विजय से शुरू हुआ संसदीय सफर तीन दशक बाद 300 के पार भी पहुंच गया। आज देश के हर कोने में भाजपा की सशक्त उपस्थिति है। आज भाजपा के बिना कोई राजनीतिक प्रक्रिया सम्भव नहीं है। पूर्वोत्तर के जिन राज्यों में भाजपा का सत्ता में आना मृग मरीचिका माना जाता था, वहाँ के लोगों ने भी उसे अपना समर्थन दिया और असम, त्रिपुरा, मणिपुर सहित अन्य राज्यों में भी भाजपा की सरकारें बनी। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की छोटी से बड़ी पंचायत में भाजपा की प्रभावी उपस्थिति दिनोंदिन बढ़ी है। अब चहुँओर कमल खिलने लगा है। चप्पा चप्पा भाजपा, यह अब नारा नहीं आज की तारीख में एक हकीकत है। इसके साथ ही वे सपने भी हकीकत में बन गए हैं, जो 2 सीटें मिलने के पहले ही देखे गए थे। जिन सपनों को लेकर जनसंघ से लेकर भाजपा तक के कार्यकर्ता गाँव-गाँव गए, वे आज साकार हुए हैं। इस दीर्घकालिक प्रक्रिया में पार्टी ने एक से बढ़कर एक पराक्रमी और परिश्रमी नेतृत्व देखा। अटल बिहारी वाजपेयी जी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक भाजपा ने देश की दलगत राजनीति में प्रेरणा के पुँज दिए हैं, जिनकी आभा से राजनीतिक जीवन जगमगा रहा है।
ऐसे विलक्षण नेताओं के नेतृत्व में भाजपा कभी भी केवल सत्ता में रहने वाली पार्टी नहीं बनी। उसने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अपनी प्रतिबद्धता के आलोक में राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत को जीया है। जिसके कारण कभी अपनी पहचान और अस्तित्व के लिए संघर्ष करने वाली भाजपा के प्रति जनता का भरोसा बढ़ता गया और कॉंग्रेस जैसे वंशवादी दलों का अस्तित्व संकट में आ गया। वंशबेल की राजनीति को देश से समाप्त करने की दिशा में भी भाजपा ने अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है और समय-समय पर साधारण कार्यकर्ताओं के भीतर से ही नेतृत्व दिया है। विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी हों या अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रीगण, एकमात्र भाजपा ने ही परिवारवाद का अंत करते हुए लोकतंत्र में अनूठे मानक तय किये हैं। अपनी 42 वर्ष की यात्रा में आज भाजपा की कोई भी समीक्षा करे तो यह आसानी से समझ सकता है कि पार्टी ने हर दौर में युवा पीढ़ी को अवसर प्रदान कर बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक एक सशक्त नेतृत्व खड़ा किया है।
किसी भी राजनीतिक दल के स्थापना दिवस का स्मरण सच्चे मायने में उसके संकल्पों की समीक्षा और पुनर्व्याख्या का सुअवसर भी है। चार दशक बाद भी यदि किसी राजनीतिक दल की अपनी विश्वसनीयता बढ़ती जा रही है तो निःसंदेह वह अपनी सही दिशा में चल रहा है। वह अपने संकल्प मार्ग पर निष्कण्टक चल रहा है। इस दृष्टि से विचार करें तो आज पूरी दुनिया देख रही है कि भाजपा ने हर हाल में कश्मीर से धारा 370 को हटाया और श्रीराम मंदिर निर्माण का सपना पूरा किया है। नागरिक संशोधन कानून हो, राष्ट्रीय सुरक्षा अथवा राष्ट्रीय गौरव का विषय हो, भाजपा की सरकार ने निर्भीकता से कड़े कदम उठाकर विश्व को चकित किया है। विगत सात सालों में मोदी सरकार की योजनाओं ने देश में गरीबों का जीवन बदल दिया है। जन-धन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना से लेकर अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आधारभूत ढांचा तैयार कर भाजपा सरकार अब 'अंत्योदय' के विचार का पर्याय बन चुकी है।
आज भारत ही नहीं पूरा विश्व देख रहा है कि एक राजनीतिक दल और उसका नेतृत्व किस प्रकार अपने उन संकल्पों को पूरा करने में सफल सिद्ध हुआ है, जिन्हें पूरा करना असंभव सा लगता था। अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ विश्व में एक बड़ी ताकत बनकर उभरे भारत ने अपने पुराने स्वाभिमान को भी वापस हासिल किया है। राष्ट्रीय संकट में जनकल्याण की कसौटी पर भी भारत ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में भाजपा के नेतृत्व में एक अनूठा उदाहरण विश्व के समक्ष रखा है। कोरोना संकट में दुनिया के अनेक देशों ने जहाँ अपने नागरिकों को अपने हाल पर छोड़ दिया, वहीं भारत में भाजपा की मोदी सरकार ने अपने हर नागरिक के जीवन को अमूल्य मानते हुए उनके लिए अनाज के साथ अन्य वस्तुओं को उपलब्ध कराया। स्वदेशी वैक्सीन के आविष्कार में प्रेरक भूमिका तो निभाई ही, हर नागरिक के लिए उसे मुफ्त उपलब्ध कराने हेतु विश्व का सबसे बड़ा वैक्सिनेशन ड्राइव चला कर दुनिया से अपने सामर्थ्य का लोहा भी मनवा लिया है। ‘‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’’ ही भाजपा का जीवन-मंत्र है।
राष्ट्र-जीवन में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की चिंता और उसके प्रति निष्ठा ने ही भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने गौरव दिया है। आमजन के जीवन में बदलाव लाकर उसे देश की मुख्य भूमिका में लाने में भाजपा के नेतृत्व ने अद्भुत सफलता पायी है, यह तथ्य संसार के लगभग सभी राजनीतिक जानकर स्वीकारते हैं। अपने 43 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल ने चार दशक पूर्व जो सपने देखे, वह तो साकार हुए ही हैं, साथ ही स्वाधीनता के अमृत वर्ष में मोदी जी के नेतृत्व में भारत 2047 के लिए अपना दिशा-सूत्र बना चुका है, जिसको पूरा करने का दारोमदार भी भारतीय जनता पार्टी के कोटि-कोटि कार्यकर्ताओं के कंधों पर है। निश्चित ही भाजपा अपनी संकल्प शक्ति, निष्ठा और नियति से इसे पूरा करेगी तथा देश के भविष्य-निर्माण की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभा कर संकल्प-सिद्धि की ओर अग्रसर रहेगी।
- -विष्णुदत्त शर्मा, लेखक, मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष एवं लोकसभा सदस्य हैं।
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