जबलपुर। ईओडब्ल्यू ने शासन को तीन करोड़ रूपये के राजस्व की हानि पहुंचाने के आरोप में आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त और लिपिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। मामला वर्ष 2018-2019 में एमपी और छत्तीसगढ़ के 8 आर्मी डिपो को जारी होने वाले एफएल-7 लाइसेंस से संबंधित है। 31 मार्च को लाइसेंस रिन्यू कराने की बजाए 1 मई को किया गया। एक महीने तक बिना लाइसेंस के आर्मी डिपो में शराब बेची गई।
ईओडब्ल्यू एसपी देवेंद्र सिंह राजपूत के अनुसार आरोपियों ने अकेले जबलपुर में 90 लाख रुपए के राजस्व का नुकसान शासन को पहुंचाया है। सभी 8 आर्मी डिपो में कुल 3 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ और इतनी ही रकम का लाभ ठेकेदार को हुआ। इसमें ठेकेदार सहित अधिकारियों ने रूपयों का बंटवारा किया। इस मामले में ईओडब्ल्यू जबलपुर में पदस्थ सहायक आयुक्त आबकारी सत्यनारायण दुबे और लिपिक विवेक उपाध्याय के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत एफआइआर दर्ज कर ली है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आबकारी विभाग सेना की कैंटीन से शराब की बिक्री के लिए एफएल-7 लाइसेंस जारी करता है। यह लाइसेंस एक साल के लिए वैध रहता है। हर साल 31 मार्च को लाइसेंस का नवीनीकरण कराना पड़ता है। वर्ष 2018-19 में आबकारी अधिकारियों ने ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए मिलीभगत करते हुए एक महीने देरी से लाइसेंस रिन्यू किया। सेना ने 13 मार्च 2018 को ही लाइसेंस नवीनीकरण का आवेदन दिया था। नियमानुसार 31 मार्च को लाइसेंस रिन्यू कर देना चाहिए था। पर इसे 1 मई 2018 को रिन्यू किया गया। आर्मी डिपो की कैंटीन में एक महीने बिना लाइसेंस के शराब बिकती रही। इससे राजस्व के तौर पर जबलपुर में जहां 90 लाख रुपए की चपत लगी है। वहीं सभी 8 डिपो में तीन करो? के राजस्व नुकसान का आंकलन हुआ है।
ऐसे पहुंचाया ठेकेदार को फायदा
अधिकारियों का कहना है कि आबकारी अधिकारियों व कर्मचारियों ने सेना की कैंटीन में शराब का विक्रय रोककर परोक्ष रूप से शराब ठेकेदारों को लाभ पहुंचाया। सेना के जवानों को कैंटीन की कम कीमत वाली शराब की जगह बाजार से ज्यादा कीमत पर शराब खरीदनी पड़ी। इससे ठेकेदार मुनाफे में रहे और सरकार को घाटा हुआ। अब एफआईआर के बाद ईओडब्ल्यू मामले की जांच आगे बढ़ाएगी।
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